कुछ न पूछिए
कुछ न पूछिए
खुशियों पे लगी किस की नज़र कुछ न पूछिए।
कैसे हुआ वीरान नगर,कुछ न पूछिए।
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मिलके यहां मनाते थे त्यौहार सारे लोग।
घोला है यहां किस ने ज़हर कुछ न पूछिए।
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हमसायों ने जला दिए हमसायों के ही घर।
नफ़रत है फैली किस कदर कुछ न पूछिए।
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सुख दुख में लोग रहते थे इक दूसरे के साथ।
क्योंकर जुदा हुई है डगर,कुछ न पूछिए।
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छीनी है सर से कैसे सियासत ने छत यहां।
मिसमार हुए कैसे ये घर,कुछ न पूछिए।
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ख़ौफ़ो हिरास में यहां दुबके है कैसे लोग।
छूटा है कैसे लोगों का घर कुछ न पूछिए।
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लाशें बिछी है,घर भी जले हैं यहां "सगी़र"।
हाकिम से अब सवाल, मगर कुछ न पूछिए।
