Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

निशांत कुमार सिंह

Tragedy

2  

निशांत कुमार सिंह

Tragedy

कुछ कर गुजरने का फितूर

कुछ कर गुजरने का फितूर

1 min
333


कुछ कर गुजरने की फितूर

ले चला मुझे, घर से मीलों दूर

अपने छूटे, सपने टूटे,

ख्वाब हुए सारे चूर- चूर

कैसा था ये फितूर।


अब तो थकना मना है,

रुकना मना है

शायद खुदा को था ये मंजूर

इस सफर में चलना है

अकेले होकर अपनो से दूर।


कुछ कर गुजरने का फितूर

ले चला मुझे, घर से मीलों दूर

अब तो कभी कभी

भूखे ही सो जाता हूं।


घर की बहुत याद सताती है, 

जब सजी- सजाई थाली तक

कर देता है खुद से दूर।

कैसा है ये फितूर।


सिमट सी गई ये सांसें

इन पराए शहरों में

हर पल याद आती है

वो पापा के डांटे,


मां की वो बातें

जिसमें प्यार था भरपूर

कहां ले आया ये फितूर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy