मैं तो डर सा गया
मैं तो डर सा गया


मैं तो डर सा गया जब अपना कल देखा...।।
हाथों से फिसलता हर पल देखा..।।
आज सुनसान पड़ी है यादें, जिसमें कभी मैंने हलचल देखा...।।
आज जैसी भी हो मेरी हालत पर अपने विस्तर में भी मैंने मलमल देखा...।।
टूट गया हूं मैं जब से मेरे कारण अपने के आंखों में जल देखा...।।
अब वो ख्वाब भी लगते हैं बे फिजूल से जिसे मैंने पल पल देखा...।।
जिस घर में दशरथ से पिता और राम भाई हो, वहां भी पड़ते खलल देखा..।।
हां जगमगाती घर का मंजर देखा...।।
हां पापा के आंखों में वो समन्दर देखा...।।
जिसने उजारे आशियां हमारे उस खुदा का खंजर देखा...।।
हां, हां मैंने अपनों का प्यार देखा..।।
और घर में खींचता दीवार देखा...।।
मैंने वक्त पर लटकी हुई सुई का मार देखा..।।
विपत्ति में बिलखता हुआ परिवार देखा..।।
मन में उठता तूफान सा बवाल है...।।
कहां जाऊं, किस्से पूछूं सैकड़ों सवाल है..।।
सबकी है एक सी कहानी है, खुदा का कैसा कमाल है..।।