कुछ भी तो नहीं बदला
कुछ भी तो नहीं बदला
सोचा था नया साल आया है, कुछ तो जाएगा ही बदल,
पर कहाँ कुछ बदला है, यहाँ तो हाल हुए और बदहाल।
रोज रोज के झगड़े, रोज रोज की कीच कीच, कड़वाहट,
कैसा होगा ये नव वर्ष, कौन सी घड़ी दे रही आहट।
बहुत घाव हैं इस दिल के अंदर, रीसते रीसते बने नासूर,
घाव पर नमक छिड़कता कोई, दर्द अब मुझे होता प्रचूर।
बात बात पर नीचा दिखाते, माँ बाप को ये दिखाते गुरुर,
शायद यही हो गया अब, आज बच्चों के मन का तसव्वुर।
पढ़ाया, लिखाया, बड़ा कर दिया, अरे भूल गया, ये तो फर्ज़ था,
कोई अहसान नहीं किया किसी पर, ये तो बच्चों पर कर्ज था।
बच्चे इसे माने या न माने, इसमें बच्चों की भी क्या गलती,
जो भी है, जैसा भी है, है तो सदा वह माता पिता की गलती।
बच्चों को बड़ा करना माता पिता का फर्ज़, इसे सब जान लो,
बच्चे का नहीं फर्ज़ माँ बाप के लिए, यह अब सब मान लो।
क्यूँ सुने वो माता पिता की, उनकी है अपनी बिंदास जिन्दगी,
किसने कहा था माता पिता से, लुटा दे बच्चों पर जिन्दगी।
गुस्से में कुछ भी कहते बच्चे, यह उनकी सोच का आधार,
पलट कर जवाब देतें माँ बाप को, यही जन्मसिद्ध अधिकार।
किसने हक़ दिया माता पिता को, करें बच्चों का “अपमान”,
अपमान के बदले अपमान ही देंगे, यही बच्चों का प्रतिमान।
मैं पूंछू इन बच्चों से, निभानी हैं जब उन्हें अपनी जिन्दगी,
तो निभाए बेशक़, पर निभाए अपने दम पर ही जिन्दगी।
नहीं कर सकते सम्मान माँ बाप का, पर अपमान तो न करें,
क्यूँ नहीं खड़े होते अपने दम पर, माँ पिता ही क्यूँ सदा मरे।
माता पिता कुछ कह दे, तो चोटिल हो जाती बच्चों की राइट,
पर ये कुछ भी अंट शंट कहेंगे, क्यूँ कि इनकी है कॉपीराइट।
कहाँ से आ गई यह भावना इनमें, कि बड़े हैं इनके दुश्मन,
करना चाहते हैं सदा मन मानी, कब जाएगा इनका बचपन।
कहते हैं नये वर्ष बहुत कुछ बदलेगा, पर कुछ भी न बदला,
वही झगड़े, वही कीच कीच, लड़ाई, सब कुछ है गंदला गंदला।
सब कुछ चाहिए इनको रेडीमेड, करते ये जिन्दगी मटियामेट,
सब कुछ करते माता पिता, फिर भी अजीब इनका सेंटीमेंट।
अब तक जो न बदल सका, अब आगे भी क्या और बदलेगा,
अब तक जो न समझ सका, अब आगे क्या और समझेगा।
चलो छोड़ दी तुम्हारी कमान, अपनी कमान अब खुद संभालो,
अपनी राह पर खुद चलो तुम, अपनी मंजिल खुद ही पा लो।
लड़ो जिन्दगी के थपेड़ों से तुम, अपने दम पर पा लो मंजिल,
मुक्त करो हमें फर्ज़ से, लड़ो सुनामी से, पा लो तुम साहिल।
अब नहीं सही जाती ये कीच कीच, अब नहीं और ये अपमान,
हमारा भी है अपना वजूद, हमें भी चाहिए बच्चों से सम्मान।