STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

4  

Neerja Sharma

Abstract

कठपुतली

कठपुतली

1 min
511

कठपुतली हूँ मैं 

बँधी हुई हूँ परिवार के तानों बानों से 

नाचती रहती हूँ सभी के इशारों पर सुबह शाम 

पता नहीं क्यों ये बंधन मुझे पसंद हैं 

कभी तोड़ने को मन नहीं करता 

शायद संस्कारों में ढली कठपुतली हूँ मैं

पर एक बात कठपुतली से मुझमें अलग है 

कठपुतली बँधन में बँधी रहती है 

नहीं कर पाती कभी भी अपने मन की

पर मैं...

स्वछन्द हूँ ...

बँधनों के बाबजूद भी 

सुनती हूँ मन की आवाज 

छूती हूँ मन के छंदों को 

प्रमाण आपके सामने 

सब काम निपटा 

अपने मन की सुन 

लिख दी न कविता 

छंद मुक्त 

कठपुतली 

बँधन में रह बंधन मुक्त

आधुनिक कठपुतली



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract