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Neerja Sharma

Abstract

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Neerja Sharma

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कठपुतली

कठपुतली

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कठपुतली हूँ मैं 

बँधी हुई हूँ परिवार के तानों बानों से 

नाचती रहती हूँ सभी के इशारों पर सुबह शाम 

पता नहीं क्यों ये बंधन मुझे पसंद हैं 

कभी तोड़ने को मन नहीं करता 

शायद संस्कारों में ढली कठपुतली हूँ मैं

पर एक बात कठपुतली से मुझमें अलग है 

कठपुतली बँधन में बँधी रहती है 

नहीं कर पाती कभी भी अपने मन की

पर मैं...

स्वछन्द हूँ ...

बँधनों के बाबजूद भी 

सुनती हूँ मन की आवाज 

छूती हूँ मन के छंदों को 

प्रमाण आपके सामने 

सब काम निपटा 

अपने मन की सुन 

लिख दी न कविता 

छंद मुक्त 

कठपुतली 

बँधन में रह बंधन मुक्त

आधुनिक कठपुतली



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