कट जाएं मेरी सोच के पर...
कट जाएं मेरी सोच के पर...
कट जाएं मेरी सोच के पर... तुमको इससे क्या ?
कहना था जो तुमने कहा...मगर मेरी नाराज़गी का क्या ?
मोहब्बत की दुहाई देकर... बहलाओ बिल्कुल ना
यही है तुम्हारा ईश्क़ अगर तो ना है मुझे मंज़ूर... ना है कोइ परवाह
खाव्हिशें होंगीं मेरी पूरी... मर्जी तुम्हारी नहीं तो क्या
वादा है खुद से... क़ैद मे नही रहेगी बुलबुल!
रोके सय्याद रास्ता तो क्या!
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कट जाएं मेरी सोच के पर... तुमको इससे क्या?
महसूस किया मैने ऎसा क्योकर...जाने हुआ मुझको क्या
भूली नामालूम क्यों... सारा तुम्हारा प्यार
कितने वादे निभाये तुमने... याद ही नही रहा
साथ तुम्हारा मिला हमेशा...फिर भी किया गिला
हूँ पशेमाँ...कि नादानी... मुआफ़ कर दो ना
अर्ज़ सुन लो मेरी...बस इतनी है इल्तिजा
लब रो रहे तड़प के..अश्क दे रहे सदा
ज़िन्दगी संवर जाए मेरी... गर कह दो
चुप हो जाओ... अब रोती ही रहोगी क्या!