क्षत्राणियां अभी बांझ नहीं हुई!
क्षत्राणियां अभी बांझ नहीं हुई!
तमतमा रहा है सूरज,अभी सांझ नहीं हुई
ठहर जरा, क्षत्राणियां अभी बांझ नहीं हुई।
जन्मेंगे सिंह फिर से
ये चट्टानें भय खाएंगे
रण की वीरता देख देव
अम्बर से पुष्प बरसाएंगे
जारी है तलवार की गुंज अभी सांझ नहीं हुई
ठहर जरा कि क्षत्राणियां अभी बांझ नहीं हुई।।
मेघ गर्जना करते वो
सर धड़ से अलग कर जाएंगे
पलक झपकते ही क्षण में
शोणित से महि रंग जाएंगे
कहाँ भागते समर भूमी से अभी सांझ नहीं हुई
ठहर जरा कि क्षत्राणियां अभी बांझ नहीं हुई।।
