"क्षमा,सहनशीलता"
"क्षमा,सहनशीलता"
भीतर दर्द भी आज दर्द से कहरा रहा है
चहूँ ओर दारुण, चीत्कार नजर आ रहा है
लाशों पे लाशों के बड़े-बड़े ढेर लगे हुए है
गिद्ध भी संकुचित मन से सिकुड़े हुए है
आज युक्रेन देश में ऐसा मातम छा रहा है
वो खुदा भी मानव को बना शरमा रहा है
आज इंसान के जान की कोई कद्र नहीं है
यह कैसा आज आधुनिक दौर आ रहा है
नरसंहार से आदमी बहादुरी बता रहा है
मुबारक आप सबको ऐसी इक्कीसवीं सदी
जिसमें मनु, मनुष्य से पशु बनता जा रहा है
फ़िजूल इस अभिमान, घमंड के चक्कर में,
पूरा विश्व यूँ ही पिसता हुआ जा रहा है
आज इंसान का लहू, इंसान यूँ बहा रहा है
जैसे की वो किसी दरिया में नहा रहा है
खास इंसान, इंसानियत को समझते तो
चहूँ ओर वीभत्स, दर्दनाक मंजर न दिखता
भीतर दर्द भी आज दर्द से कहरा रहा है
भीतर जख्म ओर गहरा होता जा रहा है
हर ओर तबाही मंजर जो नजर आ रहा है
बस करो रूस देश, बस करो युक्रेन देश
बातचीत से समस्या हल निकालो, न तुम
यूँ नर संहार से सबको रोना आ रहा है
छोड़ो घमंड की ये बेड़ियां दोनों तुम देश
एक पक्ष के थोड़ा झुक जाने से, साखी
मानवता आसमां साफ होता जा रहा है
सदैव ही क्षमा वीरों का आभूषण रहा है,
क्षमा पौरुष से तो युद्ध दैत्य भाग रहा है
क्षमा शक्ति से भीतर रब नजर आ रहा है
कोई पानी कितना गंदा क्यों न हो साखी,
वो आग बुझाने के काम तो आ रहा है
भीतर दर्द भी आज दर्द से कहरा रहा है
पर सहनशीलता की शक्ति से, आज भी
शूल, फूल से नजर नहीं मिला पा रहा है।