।। करवाचौथ ।।
।। करवाचौथ ।।
मैं सत्यवान सा हूँ कि नहीं,
धर्म सावित्री सी तुम धरती हो,
यम की मुझसे रखने को दूरी,
कितने व्रत उपवास ये करती हो ।।
तुमने जाने किस किस विधि से,
कब कब किस के उपवास किये,
रहकर निर्जल और निराहार बस,
तुमने हर सब मेरे त्रास लिए ।।
सुरज को भी पूजा है तुमने,
चंदा को भी अरघ लगाया है,
तारे, वट वृक्ष, लता, पादप,
इन सब को भी बतलाया है।।
मेरी सांसें, ये मेरा तन मन,
ये मेरे जीवन की गति सारी,
है रोम रोम ये ऋणी तुम्हारा,
ताउम्र रहूं मैं अब आभारी ।।
तुमसे सब सौभाग्य मिले मुझको,
तुम हो तो जीवन को अर्थ मिले,
ये सद्कर्म साधना ही कारक,
हर ऋतू इस जीवन में फूल खिले।।
मैं बस संसार कर्म में लिप्त रहा,
तुम धर्म कर्म और पूजा संचित,
तुम ने मेरे वो सब कर्म जिये,
मैं जिन से रहा आजीवन वंचित।।
अपने जीवन के तप से तुमने,
मेरे जीवन को आधार दिया,
खुद रह कर निर्जल उपवासी,
मेरा ये जीवन तार दिया ।।
ये करवाचौथ का दिन बस,
हम पतियों को याद ये दिलवाता,
है अडिग घर की सावित्री,
जब तक अपने धर्म खड़ी,
ये सत्यवान हर जीवन रण लड़ जाता,
ये सत्यवान हर जीवन रण लड़ जाता।

