करवा चौथ
करवा चौथ
आखिर करवा चौथ का दिन आ ही गया।
हमारी श्रीमती जी बोली।
अजी सुनते हो
कल तो हम व्रत रखेंगे।
और शाम तक खाना तो क्या
हम पानी भी नहीं चखेंगे।
मने कहा
ऐसा गजब ना करना जानम।
कहां दिन भर में हम लोग
सिर्फ खाते पीते ही रहते हैं
और जब जब तुम्हारे लिए खाना नहीं बनता
तो उस दिन हम भी तो भूखे रहते हैं।
मैं अकेला दिन भर कैसे खा पी पाऊंगा।
तुम्हारे व्रत के चक्कर में मुझे लगता है कि।
मैं भी भूखा ही मर जाऊंगा।
पर पत्नी जी ना मानी
जिद पर अड़ी रही।
और उनकी जिद के आगे
हमारी खटिया खड़ी रही।
वह बोली जानम समझा करो
तुम्हारी लंबी उम्र के लिए व्रत जरूरी है।
जिद ना करो।
यह तुम ही तो हो।
जो इस तरह मेरी सेवा किया करते हो।
हाथ पैर दबा दिया करते हो।
खाना भी बना दिया करते हो।
चौका बर्तन झाड़ू पोंछा
हर जगह तो तुम्हारा हाथ है
इसीलिए तो जानम
तुम्हारा नाम प्राणनाथ है।
ऐसे बेदाम के सेवक की
लंबी आयु के लिए
यदि मैं 1 दिन व्रत भी रख लूं
तो क्या कम है।
ऐसे साथी सेवक का साथ
इस जन्म तो क्या
अगले सौ जन्म तक मिले
तो भी कम है।
और फिर जब जब भी मैंने
करवा चौथ का व्रत रखा है।
एक न एक सोने का जेवर
और नए कपड़ों का रस चखा है।
अगले दिन करवा चौथ का व्रत था।
सूर्योदय से पहले मेरा हमदम खाने पीने में रत था।
सूर्योदय हुआ व्रत शुरू हो गया।
शाम होते होते प्रियतमा का हाल बुरा हो गया।
हमें उनका चेहरा देख देख कर
बड़ी दया आती थी।
बिना चाय खाने पानी के
उनकी तो जान ही निकली जाती थी।
हमने कहा मोहतरमा
अभी तो सिर्फ शाम के 6:00 बजे है।
चांद तो रात 8:30 बजे निकलेगा।
तब तक तो भूख प्यास से
आप का ही दम निकलेगा।
अपनी जिद छोड़ दीजिए।
हम अपना सर झुकाए देते हैं।
हमारे सिर की गंजी "चांद" देख लीजिए।
और खाना तैयार है
बस बिस्मिल्लाह कीजिए।

