कृष्ण
कृष्ण
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
न सुरीली मुरली है, न माथे पे मोर पंख है,
न मनोहर मुस्कान है, न हाथों में कोई शंख है।
तेरी मदद की उम्मीद में तेरी राह पर स्वयं को अग्रसर पाता हूँ,
इसे मोह मान या प्रेम, ऐसा ही हूँ, तभी तो इंसान कहलाता हूँ!
मनुष्य को घेरा है कष्टों ने, लुप्त न्याय के मर्म हैं,
पर तेरी शरण में आज भी सुरक्षित प्रेम और धर्म हैं।
तेरा जन्मोत्सव न हुआ पर तू प्रेम का भूखा, तू कब स्वार्थी बना है?
आज भी अस्पतालों में कितने ही अर्जुनों का तू सार्थी बना है!
तेरे स्पर्श मात्र से हर हृदय पवित्र बन जाए,
तेरे स्मरण से हर मुश्किल मित्र बन जाए,
इंसान की आंखों का कोना जब भी दुःख से हुआ गीला है,
तब हमारा यही विश्वास बोला है, "ये भी तेरी लीला है!"
जग कहता है, "न मीरा है, न राधा है,
फिर भी कान्हा, तुझ बिन वो आधा है।"
मैं तो कहता हूँ, संसार में किसी भी जीव का अस्तित्व कहाँ तेरे बिन है,
आज खुद में तुझे देखा है, इसलिए तेरे साथ आज मेरा भी जन्मदिन है!!!