मरना नहीं उपाय!!!
मरना नहीं उपाय!!!
एक चौखट पर ज़िंदगी और मौत लड़ रहे थे,
एक-दूसरे के घातक दाँव को बराबर पकड़
रहे थे।
पर इससे पहले कि कोई किसी को मार गिराता,
कि "थोड़ा हौसला रख", बोल पड़ी एक माता।
पर बेटा तो बचपन की हँसी-ठिठोली से
दूर आ चुका था,
सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुशियाँ पाने का उस पर
फितूर छा चुका था।
वह तो इस शतरंज के खेल में हिम्मत का
प्यादा हार चुका था,
ज़माने की हँसी के आगे अपने ही ख़्वाब को
मार चुका था।
माँ ने धीरे से कहा, "शायद अगली बार भी
तू हार जाएगा,
पर घड़ी की सुई घूमती रहती है,
वक्त तो तेरा भी आएगा।
कल भी दुनिया तेरे खिलाफ़ खड़ी होगी,
पर तू मर कर क्या पाएगा?
आँसू पोंछ, अपनी लड़ाई लड़, तभी तू
सफल होकर दिखाएगा।
भविष्य में क्या छिपा है, न तुझे पता है,
न मैं जानती हूँ,
पर ख़ुशियों से पहले ईश्वर इंतज़ार करवाता है,
इतना मानती हूँ।"
हज़ार मिन्नतों के बाद, बेटा खुदकुशी से
पीछे हट गया,
हौसले के सूरज से आखिर निराशा का
बादल छट गया।
इंसान की सोई हुई चेतना को प्रकृति माँ की
कोशिशों ने जगा दिया,
उम्मीदों के प्रहार से ज़िंदगी ने मौत को हरा कर
कोसो दूर भगा दिया।
मत सुनो ज़माने के तानों को,
मेहनत से करो अपनी सहाय,
मंज़िल का इंतज़ार चाहे लंबा हो जितना,
मरना नहीं उपाय!!!