कृषक पुत्र मजदूर
कृषक पुत्र मजदूर
बिना नाम जो मरता राष्ट्र की ख़ातिर कृषक पुत्र मजदूर है।
अंधकार में उसका जीवन पर दिनकर भी मजबूर है।।
वो खेतों में डटकर जीता, देता हर दिन रवि को टक्कर।
उसको पंखा कौन है झलता ? जब गिरता वो खाकर चक्कर।
उन सरहद के रखवालों संग हिन्द में वो भी शूर है।।
उनका नाम कहीं नहीं होता जो गुपचुप राष्ट्र की नींव जमाते।
जो भारत की आत्मा नहीं पहचाने, वो ही यश और कीर्ति कमाते।
अभिजित आज की बात नहीं ये सदियों का दस्तूर है।।
तुमने पैंसठ में विजय दिलाई, जब पाक ने किया आघात।
अब भारत इतना सक्षम है, दे सकता है विजय को मात।
ये सब तो छोटे उपवन थे, मंज़िल अभी तो दूर है।।
