गर तू मेरा नहीं
गर तू मेरा नहीं
जब भी मैंने चढ़ाई थी चादर कहीं।
सोचकर ये मिलोगे सनम बस तुम्ही।
तू सलामत हमेशा रहे हर जगह,
गर तू मेरा नहीं, और का ही सही।
ये ना सोचा था, कि यूं भुलाओगे तुम।
राह में ही मुझे छोड़ जाओगे तुम।
मैंने कोशिश बहुत की भुला दूँ तुझे।
बिन तेरे जी के मैं भी दिखा दूँ तुझे।
पर तू है रूह से जो निकलती नहीं।
बिन तेरी याद के सांस चलती नहीं।।
मैंने पत्थर भी पूजे, दुआएँ भी ली।
और तुझे भूलने की दवाएँ भी ली।
था ख़ुदा से भी पूछा ये मैंने तभी।
भूल पाऊंगा उसको क्या अब मैं कभी?
बताया था रब ने भुलाएगा लेकिन।
उमर तुझ को इतनी तो दी ही नहीं।।
मेरे जो भी वादे और कसमें भी हैं।
मुझे याद सारी वो रस्में भी हैं।
सुन लो तुम अब मेरी बात ये।
मौत आए कभी दिन या कि रात में।
मुझ को बस एक ही आवाज़ दोगे अगर।
मिलूंगा मैं तुम को वहीं का वहीं।।