क्या
क्या
जब सबकुछ तुम जान रहे हो, तो फिर तुम्हें बताऊँ क्या ?
तुम ही दिल का राज हो मेरे, तुमसे राज छिपाऊँ क्या ?
कई जगह पर पढ़ा है मैंने कि इश्क निगाहें करती है।
क्या कहती हो मैं भी तुमसे, अपनी नजर मिलाऊँ क्या ?
बहुत ज़मीनें देखी मैंने, पर जगह कोई भी भाई ना।
तेरे दिल में ही अब मैं, घर अपना बनवाऊँ क्या ?
मैंने सुना है मेरी खातिर, हर सोमवार को व्रत रहती हो।
मैं भी तुमको जाने-जाना मांग ख़ुदा से लाऊँ क्या ?