कर्म(गजल)
कर्म(गजल)
क्यों करता है बुराई किसी की,
हर पल भलाई की तैयारी रख।
धंस जाएं पांव मिट्टी में अगर,
उस मिट्टी से भी यारी रख,
ठुकरा देता है अगर दिल से तुझे कोई,
तू अपने दिल में दिलदारी रख।
चोट न पहुंचे बातों से किसी को,
तू जबान अपनी प्यारी रख।
कर ले मदद जरूरतमंद की
इतनी तू समझदारी रख।
क्यों अकड़ता है अपने गुमान में,
क्यों भेजा था भगवान ने, सोच यह अपनी प्यारी रख।
पहचान तेरी रहे अलग ही भीड़ में,
ऐसी तू कलाकारी रख।
माना की अलग अलग फितरत है इंसान की सुदर्शन,
नहीं मिलता दिल किसी से अगर, तू फिर भी जुबान प्यारी रख।
न जानें किस भेस में मिल जाएं भगवान तुझे,
तू हरेक इंसान से यारी रख।
मत ठुकरा किसी को दरिद्र समझ कर,
नजर इतनी प्यारी रख, कोई समझे या न समझे
तू अपनी वफादारी जारी रख।
कर्म किए जा नित रोज तू फल की न तैयारी रख,
तेरा किया तुझे ही मिलेगा सुदर्शन,
तू कर्म की गठरी प्यारी रख।