करीब हो मगर
करीब हो मगर
करीब हो मगर,
फिर भी दूर-दूर लगते हो,
मैं सो जाता हूँ,
तुम ख़्वाबों में जगते हो,
फ़िक्र कितनी है मिरी तुम्हें,
ख़बर है मुझे,
कोई निकल न जाए आगे,
इसलिये संग ही भगते हो,
करीब हो मगर,
फिर भी दूर-दूर लगते हो।
मैं घोड़े पर होता हूँ सवार,
तुम तांगे खींचते हो,
मिरी ख़्वाब-ए-फ़सल को,
तुम ऐसे ही सींचते हो,
पाँव थक ना जाएं,
बस मधुर ताल बजते हो,
करीब हो मगर,
फिर भी दूर-दूर लगते हो।
तुम लक्ष्य हो,
यह आभास होने नहीं देते,
मस्तक पे ही होते हो बैठे,
कभी सोने नहीं देते,
मुस्कुराता हुआ किताब लिए,
सुनाते हो कहानियां,
नैनों से ही अक़्सर,
करते हो मनमानियां,
ऐसे ही खुशनुमा अंदाज से,
मुझे हर बार तकते हो,
करीब हो मगर,
फिर भी दूर-दूर लगते हो।