क्रांतिवीर
क्रांतिवीर
हूँ क्रांतिवीर,हूँ दग्ध धरा सा,
हूँ अटूट निश्छलअज्ञानी,
हूँ कठोर पाषाण शिला सा,
यूँ न विचलित हो जाऊंगा,
जन जीवन के स्वप्निल पथ पर,
फिर से मिलने आऊंगा।
हे प्रिय!तुम वियोग में,
अश्रु न यूं जाया करना,
इन अश्रु लड़ी की मालाओं को,
धारण करने आऊंगा,
तेरे जीवन के स्वर्ण स्वप्न में,
फिर से गीत रचाऊंगा,मै,
फिर से वापस आऊंगा,
तुमसे मिलने मै आऊंगा।
ये जन्मभूमि है मातृभूमि सम,
क़र्ज़ न इसका रख पाऊंगा,
इसकी रक्षा में कण कण शरीर का,
न्यौछावर मैं कर जाऊंगा,
पर फूलों के सेज़ में सजकर,
तुमसे मिलने आऊंगा।
तेरे स्वर्णिम पथ पर मैं,
जुगनू सा रह दिखाऊंगा,
तेरे जीवन के प्रत्येक सफर में,
फूलों से बिछ जाऊंगा,
पर फिर न वापस जाऊंगा,
संग तेरे ही रह जाऊंगा,
फिर न वापस जाऊंगा।
