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Gaurav Singh "Gaurav"

Romance Inspirational

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Gaurav Singh "Gaurav"

Romance Inspirational

बादल

बादल

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बरसते है बनकर बूँद बादल,

खाकर थपेड़े वायु के,

बहती है नदियाँ नील निर्मल,

साफ,सुंदर,श्वेत पर्वत,

की छाती चीरकर,


भरकर हृदय को प्यार से,

औ' सोम से होकर लबालब,

होती है न्यौछावर निरंतर,

प्रयाग सम संगम तटों पर।


क्यूँ चाहते हो फिर मनुज तुम ?

एक संग सब सुख,प्रेम और ऐश्वर्य पाना।


खाकर निरंतर ठोकरें ही,

और घिसकर शिवालिक की सतह पर,

निर्जीव पत्थर है रूप लेते,

पूज्यनीय शिवखंड का।


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