कुछ कदम बढ़ो चाँद,
कुछ कदम बढ़ो चाँद,
कुछ कदम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ,
रात है घनी, मुलाकात मखमली,
साथ जब तलक हो तुम, ये रात है बड़ी,
कुछ कदम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ।1
ये रोशनी तेरी, छल सी अब लगे,
है नरम बड़ी न नैन को चुभे,
मगर ये तेरी चांदनी, औ' रूप की गमक,
कुरेदती है मिल के दिल के घाव को,
कुछ कदम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ।2
सूर्य भी बढ़े कुछ गगन तरफ,
नरम पवन चले, सुंदर सुमन खिले,
दिन के दिये जलें, ले दिनकर की लालिमा,
उठ पथिक बढ़े ,गंतव्य की तरफ।
कुछ कदम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ।।3
