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Gaurav Singh "Gaurav"

Others

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Gaurav Singh "Gaurav"

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बादल

बादल

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ये काल से विक्रांत से,काले घिरे आकाश में,

एक स्याह छाया सी बनाते,रवि के निर्मल प्रकाश में,

हैं अकिंचित,डर न भय है,दिख रही नूतन लहर है,

सत्य ही बदलाव की, इनके विकट हुंकार में।


समय की पुकार से,धरा के उद्धार को,

आ खड़े हों जैसे दुदुंभी की पुकार से।


रात भर चमकती रही ज्वाला चित्कार की,

जैसे हों प्रतीक्षित नव क्रांति के शुरुआत को।

चाँद,तारे दूर भागे, हिरण की सी चाल से,

आ डटी स्वर्णिम प्रभा,प्रातः नभ संसार में।


आ मिले रवि,वायु औ' जलद सभी,

क्रांति के माहौल में,मिलन के इस प्रलाप में,

इक बूँद आ गिरी धरा में,एक नए बदलाव की,

खोल बाहें सुमन ने,बूंद का स्वागत किया,

 एक नए अंदाज में।।

                   

                



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