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Gaurav Singh "Gaurav"

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Gaurav Singh "Gaurav"

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आंसू

आंसू

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हे अश्रु! चक्षु के सुमन कुसुम,

हे! वीर सुता के दृग मोती,

नैनों से लुढ़क-लुढ़क गातों में,

कुछ यूं मिलते जज़्बातों से,

जैसे टूटे शैल नदी से,

प्रस्तर से खड़े भवन ऊंचे,।

प्रेम सूत तुम अश्रु लड़ी,

नैनन से निर्झर सम बह-बहकर,

प्रेमी को राह दिया प्रति पग,

खुद नैन विरह को सह-सहकर

हे! शशि सम सुंदर वैरागी,

है ऋणी तुम्हारी हर माता,

है ऋणी तुम्हारे ,

हर कृष्ण पक्ष,

है ऋणी तुम्हारी हर राधा।।

     


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