आंसू
आंसू
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हे अश्रु! चक्षु के सुमन कुसुम,
हे! वीर सुता के दृग मोती,
नैनों से लुढ़क-लुढ़क गातों में,
कुछ यूं मिलते जज़्बातों से,
जैसे टूटे शैल नदी से,
प्रस्तर से खड़े भवन ऊंचे,।
प्रेम सूत तुम अश्रु लड़ी,
नैनन से निर्झर सम बह-बहकर,
प्रेमी को राह दिया प्रति पग,
खुद नैन विरह को सह-सहकर
हे! शशि सम सुंदर वैरागी,
है ऋणी तुम्हारी हर माता,
है ऋणी तुम्हारे ,
हर कृष्ण पक्ष,
है ऋणी तुम्हारी हर राधा।।
