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Brajendranath Mishra

Abstract

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Brajendranath Mishra

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कोरोना ने बदल दिए आचरण

कोरोना ने बदल दिए आचरण

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जिन आदतों को अपनाने में झिझक होती थी,

जिन हाथों को जोड़कर कहते नहीं थे नमस्ते।

उन्हीं आदतों को जीवन में पुनः अपना रहे हैं,

अब तो हाथ मिलाते नहीं, जोड़ते, हंसते-हंसते।

कोरोना ने सिखाया, पूर्व परंपरा का अनुसरण।

कोरोना ने बदल दिए है सबों का आचरण।


जो हस्त पाद प्रक्षालन बिना प्रवेश कर जाते थे,

जो हाथों को धोए बिना चम्मच कांटे से खाते थे।

अब वे ही साबुन से हाथ धोते हैं मल मल कर,

अब वे ही कहते हैं, स्वयं से कभी मत छल कर।

कोरोना ने सिखला दिये, उत्तम गुणों का वरण।

कोरोना ने बदल दिए है सबों के आचरण।


जो मांसाहार के बिना एक दिन नहीं रह पाते थे,

जो चिकन पकाते, चटखारे ले लेकर खाते थे।

जो मीट स्टाल पर लाइन लगाकर खरीद करते थे,

पार्टियों में नॉन वेज के लूट को टूट टूट पड़ते थे।

कोरोना सिखलाये, शाक - भाजी खाने का चलन।

कोरोना ने बदल दिए हैं, सबों के आचरण।


जो प्यार जताने को, प्यार निभाने को, गले लगाने को,

मिलने जुलने को, दिल मिलाने को गले पड़ जाते थे।

आज वही दूर-दूर रहते है, देखते ही नजरें चुराते है,

अगर मिल भी जाए तो हँसकर ही प्यार जताते हैं।

कोरोना कह रही अब ऐसे ही करें मिलन।

कोरोना ने बदल दिए है सबों के आचरण।


ट्रेन नहीं चल रहे, बसें भी पता नहीं कब तक रहेंगी बंद

एयरपोर्ट पर यात्री उड़ाने नहीं, दुनिया गयी है संभल।

आये हों विदेश से कराएं जांच, रहें क्वारएनटाइन में,

बीमारी फैलने से रोकें, भीड़भाड़, पार्टी में मत निकल।

कोरोना कह रही नियमों का मत करो उल्लंघन।

कोरोना ने बदल दिए हैं सबों के आचरण।


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