STORYMIRROR

राही अंजाना

Abstract

3  

राही अंजाना

Abstract

कोई मिट्टी बता रहा है कोई

कोई मिट्टी बता रहा है कोई

1 min
294

जो नज़र आ रहा है वो हाथों से सरकता जा रहा है,


वो कौन है जो ये सहसा भ्रम फैला रहा है,


जिस्म के आकार के इतने सन्दूक बना रहा है,


वो कौन शिल्पकार है जो ये साँचे बना रहा है,


कोई मिट्टी बता रहा है कोई मुक्ति बता रहा है,


वो कौन राहगीर है जो सही रास्ता बता रहा है॥



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract