कोई एक जगह..
कोई एक जगह..
कहां गुम हो !
कब से ढूंढ रही तुमको
व्यस्तताओं के घने जंगल में ,
क्या नहीं पहुंच पाती तुम तक
मेरी कोई भी आवाज ,
कि लौट आती हैं बार-बार मुझ तक
मेरी ही प्रतिध्वनियां !!
याद है न
मिले थे हम-तुम
इसी अक्षय वन में
अपनी-अपनी चिंताओं के संग ,
दिख रहे हो अब भी
चुप-चुप
सुदूर छोर पर
थामे हुए अनबीते कल की परछाइयां ,
और ढूंढ रही हूं मैं भी
कोई एक जगह
बनी होगी जो सिर्फ हमारे लिए ही !!