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दिनेश कुशभुवनपुरी

Romance

4.7  

दिनेश कुशभुवनपुरी

Romance

कोहिनूर

कोहिनूर

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मेरा जीवन धुआँ  धुआँ है, मैं उड़ता हूँ धूलों जैसा।  

तेरी खुशबू जग महकाए, तू खिलती है फूलों जैसा॥

मैं बगिया का सूखा पत्ता, जिसको कोई नहीं उठाए।   

तू खुशबू का ऐसा झोंका, जिसको कोई रोक न पाये॥

मैं हूँ नभ का ऐसा बादल, चाह के भी जो बरस न पाये।   

इंद्रधनुष सी सुंदर  है तू, तुझमें सातों रंग समाये॥

मैं धरती का सूखा वन हूँ, जो दावानल बीच फँसा है।   

तू धरती की हरियाली है, जिसमे सबके प्राण बसा है॥

काटों वाला नागफनी मैं, जिसको देख सभी घबराए।  

तू फूलों में गुलाब जैसी, जो काटों में भी मुस्काए॥

मैं हूँ इक रस्ते का पत्थर, जिसको सारे ठोकर मारे।    

तू है उन परियों के जैसे, जिसको अम्बर स्वयं दुलारे॥

मैं हूँ इक अंजाना राही, जिसके राह अँधेरा धमके।    

तेरी चमक चाँदनी जैसी, "कोहिनूर" के जैसी चमके॥


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