कमल दल
कमल दल
कल रात सपनों में जो तुम मिले
जैसे लाखों गुल तन मन में खिले
मुस्कुराते रहे रात भर तारे गगन पे
झुमती रही रात भर जुल्फे पवन से
करवटें बदलती रही बिस्तर पर मैं
नींदों में मुस्कुराती रही शरमाती रही
नींदो में ही गाती रही गुणगुणाती रही
अपनी प्रीत को झुले झुलाती रही
भोर हुई तब ताजगी सी महसुस हुई
जैसे कमल दल खिले हो बीती रात में।