कमल दल जैसी तुम
कमल दल जैसी तुम
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कमल के पत्ते पे पड़ती
पानी की बूँदों जैसी तुम
इस दुनिया की होके भी
इस दुनिया की न लगतीं तुम
कीचड़ में ऊपर उठके
जो खिलता है वो कमल हो तुम
आसक्ति की मोह माया में
जो न फँसे वो भ्रमर हो तुम
जिसको सुन मन वृन्दावन हो
मीरा की वो तान हो तुम
जिसकी लय पे रास रचे
बाँसुरी वो कान्हा की तुम।