कलयुगी दोस्त
कलयुगी दोस्त
ये कविता दो दोस्तों के बारे में है, जिनमे से पहला दोस्त ज़िंदगी से हताश हो चुका है।
(पहला दोस्त)_
जीवन बहुत दुखी करता है,
जो जीता है वो मरता है,
चलो चलें हम मन की करने,
आत्महत्या खुद ही करने।
जल जाएं या पानी में कूदें,
कैसे अपनी आंखें मूंदे।
कट जाएं या खाएं ज़हर,
वैसे गहरी भी है नहर।
क्या पर्वत से छलांग लगाएं,
शायद यूं भी जान ना जाए।
खाएं फांसी या कुछ और,
या बन जाएं डाकू_ चोर।
तुम ही कोई बताओ उपाय,
ऐसे तो यूं मरा ना जाए।
(दूसरा दोस्त)
पानी पीना बंद करो,
डीहाईड्रेशन से तुम मरो।
करके किसी का निर्मम खून,
कर दो थाने में टेलीफोन।
नींद की गोली खाओ तुम
चैन की नींद सो जाओ तुम।
(पहला दोस्त
कैसे आए तुम्हें ये झक्कास
उपाय???
(दूसरा दोस्त)
बाजार से हम एक पुस्तक लाए।
उसमे थे__ मरने के सौ तरीके,
आओ ट्राय करें ,कुछ सीखें।
(पहला दोस्त)
मैंने तेरे दिल में पाया,
लोभ, ईर्ष्या, छल और माया।
तुम कितने गंदे हो दोस्त,
देना चाहते मुझको मौत।
मैं ले रहा था तेरे मन की बात,
तुम नहीं हो मेरे साथ।
मैने इससे बहुत है सीखा,
दुनिया में नहीं कोई किसी का,
दुनिया में नहीं कोई किसी का।