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Renu Singaria

Tragedy

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Renu Singaria

Tragedy

कलयुग

कलयुग

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कैसी ये विपदा है कैसी ये घड़ी है ,

सज्जन मौन है और दुर्जन का बोलबाला है ,

यहाँ हवा भी आग सी तपन देने वाली हो रही है, 

और कलह रूपी आग  हर घर को जला रही है,

शीतलता जैसे खत्म होती जा रही है,

ये प्रभु का कैसा खेल है -

धरती पर ईश्वर का अंश था, पर अब सब शून्य सा लगता है ,

आज किसी को भी मार देना, 

किसी की लज्जा भङ्ग् करना महज आसान बात है,

 हर चीज़ में जान थी ,

अब सब कुछ बेजान सा है ,

गाये जो माताएं थी आज लम्पी से अत्यन्त

कष्टप्रद है उनका जीवन ,

जो पशु पक्षी प्रकृति तत्व थे ,

आज उनका हास हो रहा है ,

हाय रे कैसी ये विपदा है कैसी ये घड़ी है,

दर्द अनेक है ,शब्द अनेक है पर्

अब और क्या लिखूँ में बस यही मेरी कविता का अंत है ।


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