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Renu Singaria

Tragedy

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Renu Singaria

Tragedy

न्याय या अन्याय

न्याय या अन्याय

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आज फिर से पुराना दर्द छलका है,

आज फिर से दर्द रोया है,

आज उभरे ज़ख्म पुराने है,


असहनीय हो रहा हो रहा है ये दर्द

कि इसने नए दर्द को जना है,

बात कहीं और की नहीं,

 न्याय के आलय की है,

न्याय मूर्ति संग्रहालय की है,

बात मेरे कार्यालय की है,


जहां न्याय के कार्य सम्पादित करने वाले

निम्न कर्मचारीगण स्वयं अन्याय से ग्रस्त है,

उनकी न कोई सुनता है, न कोई उनका दर्द देखता है,

बस हर तरह से उन्हें बस सुनने को ही मिलता है,


मनुष्यता जैसे खत्म सी है,

यदि किसी में अंश है भी तो वो स्वयं

इतने लिप्त है कि कुछ कर नहीं सकते,


मुकद्दमो की अधिकता होती जाती है,

मानो कि दुनिया में प्रेम खत्म होता जा रहा है,

और विध्न बढ़ता जा रहा है ।


आज फिर से पुराना दर्द छलका है,

फिर से दर्द रोया है,

है प्रभु है न्याय की देवी करुणा करना सब पर

अपनी,

सत्यमेव् जयते। सत्यमेव जयते।


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