शिशु
शिशु
प्रथम हर वो देह जो सिर्फ एक शिशु है ,
हर जन्मा शिशु है परमात्मा की सुंदरतम कृति,
प्रथम, द्वितीय ,तृतीय में बच्चा होता है सबसे बिल्कुल अंजान
कुछ ना जाने कुछ ना समझे
होता है बहता पानी सा ,
ठंडी पवन सा ,सिमटी प्रातः की ओस सा,
जब सोता है तो कभी हलके से हसता है दूसरे ही क्षण रोता है , फिर पुनः शिथिल हो जाता है,
ये सुदर भाव एक आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति से लगते है ,
चतुर्थ ,पञ्चम् ,षष्ठ में होता है सुखी माटी सा,
कुछ समझता है कुछ महसूस करता है,
कुछ हरकतें करता है कुछ क्रियाए करता है ,
ये सब मैने जाना जब मैंने एक शिशु को जन्म दिया!
चाहे लड़का हो या लड़की शिशु एक शिशु होता है ,
परमात्मा प्रदत्त एक सुंदरतम कृति!
इसे प्रेम दे स्नेह दे ।
कुछ लोग लड़की को संतान ना चाहते हुए,
कुछ लोग बच्चे के बेवजह जन्म जाने पर ,
देते है निद्रयता से फेक
प्रभु उन बच्चोंं पर रखना टेक ।
कैसे कोई इतना निर्मम और क्रूर हो जाता है,
और पापी बन जाता है ,
ऐसा ना किजिये मित्रों - जवाब तुम्हें देना होगा
एक दिन !
कुछ ना बचेगा जीवन् में ,
रह जाओगे गिनते दिन !
फिर समय इतना क्रूर होगा,
धर्म तुमसे कोसो दूर होगा !
ये खुशबू और मुस्कान भरे फूल है
हर जन्मा शिशु है परमात्मा की सुंदरतम कृति!!