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Dayasagar Dharua

Abstract

5.0  

Dayasagar Dharua

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किसी युवती के जैसा

किसी युवती के जैसा

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तथ्य है कि

धरती धूप को चाहती है

तभी तो हर बरस

किसी युवती के जैसा

धरती खुद को सवारती है


अपनी पेड़ों के टहनीयों मे

नवनीत पत्तियों को स्वागत करती है

पुरातनों को तोड़ते बिखेरते

किसी युवती के जैसा

अपनी बचपनाओं की जलांजलि देती है


तब पलाश और सेमल के फूलों से

धरती रंगने का मौका वसंत से ही पाती है

अपनी आगन्तुक प्रेमी धूप को रिझाने

किसी युवती के जैसा

धरती मुहँ दिखाई की रस्म निभाती है


धरती को अपने प्रेमी से मिलते देख

पंछियों का जोड़ा हर वसंतों मे ही बनती है

तब वेद के मन्त्र सा भँवरें गुनगुनाने पर

किसी युवती के जैसा

धरती धूप के साथ ब्याह रचाती है।


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