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Manjeet Kaur

Tragedy

4  

Manjeet Kaur

Tragedy

किसान संघर्ष

किसान संघर्ष

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किसान है अन्नदाता 

जागे सूरज से पहले, सोये सूरज के बाद 

तारों के संग रात भर जागे,

तपती धूप में, बरसाती रातों में 

फसल उगाता, रखवाली करता, सदैव ऋणी रहता,

दयनीय स्थिति में जीता ,सूखे की मार सहता,

बाढ से भी उलझता, दूसरों के पेट भरता, खुद भूखे पेट सोता 

दो जून रोटी को तरसता, मौसम की मार खाता

निढाल हो कर्ज़ से, बेदखल हो ज़मीन से 

परेशान हो चीजों के बढते दाम से ,कुंठित हो फसल के घटते दाम से 

कर्ज़ो में डूबा , तिल तिल मरता , आत्महत्या के लिए मज़बूर होता 

सदियों से पीडित किसान , बिचौलियो ने लूटा उसको

दया न आई विधाता को, कठोर भाग्य बनाया उसका 

शोचनीय स्थिति उसकी कृषक देश में 

न कुछ उगायेगा गर वह, तो क्या खाक खायेंगे

शांतिपूर्ण विरोध किसान का न सुना, न देखा कहीं 

लोकतंत्र की बुझती मशाल पुनः जला रहा किसान।


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