किन्नर
किन्नर
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रोज नहाता था
फिर भी ये कैसा मैल
जो छूटता ही नहीं
कैसा डर जो
फैलता है,
जकड़ता है
मां की गोद से अलग
बैचेन रातें लोरी के लिए
किसके पकड़ में कसमसाता
व्याकुल मन उन हाथों से छूट
भागने को,
अपने वक्त में कैद
अतीत की जासूसी
करता वर्तमान
खुलती नजरों के सामने
चंद तस्वीरें, बचपन की
फिर भी यादों का एक कोना
सुरक्षित है , किसी गुप्त
दरवाज़े के पीछे
ना मैं पुरुष, ना मैं नारी
अर्द्धनारीश्वर हूँ
शिव के अवतारी
मैं निकला हूं अनोखी एक
यात्रा में और
तिथि भी तय हो गई है
यहाँ जाऊँ या वहाँ जाउँ
तुम्हारे समाज में
आत्मा तरह रहना है
आत्मा तरह रहना है।