ख़्वाब
ख़्वाब


एक हसीं ख़्वाब से कल रात मुलाक़ात हुई,
नब्ज़ तो थम सी गई बस आँखों से ही बात हुई,
बड़ा मुश्किल था उससे यूँ बातें करना,
मगर ग़ुफ्तगू भी खुलके बेशुमार हुई,
मैंने पूछा उसे कि क्या है ठिकाना तेरा?
कम से कम मिल तो लूँ, मेरा भी जब दिल चाहे,
ना कोई रोक,ना कोई टोक तुम्हें सकता है,
अपनी मर्जी से आते हो ख़ुद ही जाते हो,
उसने बोला- क्यों फिरती हो मुझे ढूँढती तुम?
मैं तुम्हारी ही पलकों पे जन्म लेता हूँ,
वहीं उठता हूँ, पलता हूँ, वहीं बढ़ता हूँ मैं,
वहीं एक छोटी सी उम्र भी जी लेता हूँ,
मैं बस ख्वाब हूँ,मैं बस ख्वाब हूँ,
मुझे पाने की कोशिश ना करो,
मैं बदलती हुई दुनिया का मोहताज नहीं,
मेरा अस्तित्व मेरे यूँ ही खो जाने में है,
ग़र हकीकत में बदल जाऊँ तो मैं 'ख़्वाब' नहीं।