खुद की फिक्र में गाफिल
खुद की फिक्र में गाफिल
जो बस खुद की फिक्र में गाफिल
उनसे औरों को भला क्या हासिल
दिन ब दिन बढ़ रहा उनका कुनबा
जो खुद लिखते नित अपना खुतबा
झूठे और लबार कुचल रहे पग पग
पर देशवासियों के अगनित स्वप्न
आपाधापी में कहीं गायब हुए सब
ओर छोर से नैतिकता के प्रश्न
काश सभी नौजवान समवेत स्वर
में मांग सकें उन्नति का सही हिसाब
तभी शायद इस देश में दिखाई पड़
सकता है सामाजिक इंकलाब।