खुद ही मैं
खुद ही मैं
खुद से खुश हो लेती हूं
जिंदगी जी लेती हूं
चाहे जैसे भी रहूं
मैं तो खुद मैं ही हूं
खुद पर मुझको आस है
खुद पर ही विश्वास है
क्यूं करूं परवाह किसी की
जो इच्छा है करूं वो मन की
कब क्या करूं क्या नहीं
यह क्यों करूं परवाह
मन करता है वही करूं
जो दबा रखी थी चाह
सबको बहुत संभाला मैंने
अब खुद को भी संभालना है
दूसरों के लिए तो बहुत जिया
अब खुद के लिए भी जीना है
घर को संवारने के साथ-साथ
खुद को भी थोड़ा संवारना है
अपने कुछ ख्वाहिशों को
फिर से गले लगाना है
अपनी अधूरी इच्छाओं के संग
जीऊंगी जिंदगी के नये ढंग
भूली-बिसरी उम्मीदों के रंग में
जी लुंगी जिंदगी उमंग में
बच्चों का हर पल साथ दिया
हूं तो ममता की मूरत
खुद को भी थोड़ा समझ लूं मैं
खुद को मुझे है खुद की जरूरत
अपनी तमन्नाओं के संग
मैं बढ़ती जाऊंगी
नए सफर की नई रोशनी में
फिर से जगमगाऊंगी
कभी बचपन में जाकर
जिंदगी दोबारा जी लुंगी
तितलियों परिंदों के संग
कभी फुर्र से उड़ जाऊंगी
समय के साथ
मैं क्यूं ना बदलूं
जरा खुशी के रास्ते ढूंढ लूं
खुश होकर क्यूं ना जी लूं
मैं तो आगे ही बढूंगी
खुद ही तो चुनूँगी
अपने पसंद की जमीं
और ख्वाबों का आसमां
