महबूबा
महबूबा
कहत मुसाफिर...अब जात हैं जाना !
हम कैसे बताएं....फिर कब आना ?
कहत मुसाफिर...अब जात हैं जाना !
दो दिन होत बसेरा, फिर सब को उठ जानाI
कहत मुसाफिर....अब चलत हैं जाना,
यादें हमारी संजो के रखना,नहीं इनको भुलानाI
खत जो लिखे थे.....बोल जो कहे थे,
अब उनको ही अपना.....महबूब बनानाII
मेरी हर वफा को....मेरी हर लिहा को,
समुंदर किनारे....मिलन की सिखा कोI
अपने सोलह सिंगार के...मध्य सजाना,
मुझे ना भुलाना साजन, मुझे ना भुलानाII
तस्वीर मेरी सजा के रखना,
कभी नहीं दिल से उसको गिरानाI
मेरी हर निशानी को मेरी इस कहानी को;
तुम छुपा के रखना दिल में छुपा के रखनाII
कहत मुसाफिर...अब रमत हैं जाना,
अगले जनम तुम.....फिर मिल जाना
सातों जन्म का बंधन....हमें है निभाना !
तेरे संग फिर से है..........जिंदगी बितानाII