खोया हूँ मैं...
खोया हूँ मैं...
किसी माँ के आँचल के पल्लू में,
सिसकी मारकर कर रोया हूँ मैं,
आज के प्रेम रोग में रंग कर,
अपनों को संजोया हूँ मैं।
कहीं खोया हूँ मैं...
अपने बैठे हैं सामने,
दूरभाष पर नयन टिकाए,
चारों तरफ सब को भुलाए,
इस मोह माया में छाया हूँ मैं।
कहीं खोया हूँ मैं...
टन-टन-टन की आवाजें,
हर पल यूँ ही हमारे बाजे,
मन को वशीभूत कर,
हर क्षण लुभाया हूँ मैं।
कहीं खोया हूँ मैं...।।
