ख़ुद को
ख़ुद को
ले जाएँगें तुम्हें कहीं दूर
दूर, बहुत दूर, तुम से भी दूर
जहाँ पुष्पकन्दर विकसित हों
जहाँ मेघ नील, स्वच्छ और उजलें हों
जहाँ समीर शुचि, वारि निर्मल हों
जहाँ प्रेमकाव्य कंदरों में भी झंकृत हो
जहाँ तुम स्व दृष्टिगोचर हो
जहाँ किसी और का प्रवेश निषिद्ध हो
ले जाएँगें तुम्हें कहीं दूर
दूर, बहुत दूर, तुम से भी दूर।

