ख़त...
ख़त...
ख़त जो लिखा था
मैंने तुम्हारे नाम,
या फिर... ख़त जो
लिखा गया था मुझसे
तुम्हारे लिए-
इज़हार की कोशिश में;
पहुँच नहीं पाया कभी
अपने मुक़ाम तक
मेरी तरह….!
शायद याद हो तुम्हें,
तुमने वादा किया था
मुझसे उस दिन
सोचने की कोशिश का !
इतने अर्से में अगर
सोचा हो कभी भी,
तुमने मेरे बारे में
या उस ख़त के,
तो मुझसे मिल लो-
सिर्फ़ एक बार…
क्योंकि वो ख़त
आज भी
मेरे दिल की
तहों में महफ़ूज़,
राह देख रहा है तुम्हारी,
मेरी ही तरह...!!