जब कभी अख़बार में पाती हुँ शर्म से आँखे झुक जाने वाली ख़बर...
जहाँ नीची जात कहकर किसीको मरते दम तक मारा गया था....
उस खबर में फ़क़त आदमी नही मरा था....
बल्कि उस के साथ इन्सानियत भी मारी गयी थी....
ख़बरें सिर्फ ख़बरें नही होती है....
उनका एक स्टेटस होता है....
कुछ खबरें हेडलाइंस के दर्जे की होती है....
तो कुछ खबरें रूटीन वाली खबरें होती है.....
इन्सानियत की मौत की ख़बरें रूटीन वाली होती है....
बेदिल पत्रकार ये रूटीन ख़बर लिखता है....
और जागरूक संपादक अख़बार के किसी कोने में छाप देता है...
साजिश से उस ख़बर को पाठक की निगाहों से छुपाया जाता है...
मेरा मन हज़ारों सवाल करता है...
उस सोच के बारेे में पूछता है....
वह सोच कैसी होती है जो इन्सान को जातपाँत में बाँटती है?
वही सोच भीड़ की शक्ल में उसे जानवर की तरह मारती है....
वही सोच रोटी बेटी के रिश्तों में दरार डाल देती है.....
फिर इन्सानों के दरमियान फ़ासले पैदा करती है....
वह सोच आज नही बल्कि बचपन से देखसुन कर पनपने लगती है...
धीरे धीरे हमारे अवचेतन मन में रच बस जाती है....
वह सोच बेहद समझदार होती है..
ऑफिस और कॉलेज में महीन तरीके से असर करती है
और गरीबों पर कुछ अलग तरीके से असर करती है.....
यह अख़बार और टीवी की दुनिया कम पाखण्डी नही होती है....
पाखण्डी मीडिया में इन्सानियत की मौत की ख़बर की टीआरपी नही होती है...
पाखण्डी मीडिया देेेश की विश्वगुरु वाली इमेज की ब्रैंडिंग में लगे है...
हाउ डी और केम छो इवेंट की पब्लिसिटी के काम में लगे है...
इनसे फुर्सत मिलने पर बॉलिवुड की ख़बरें चला लेते हैं....
आख़िर जनता के एंटरटेनमेंट का खयाल कौन रखेगा?
किसी के हिम्मत कर पूछनेपर मीडिया ट्रोल करने लगता है...
आज़ादी के इतने सालों के बाद देश प्रगति की राह पर चल पड़ा है
देश की इकॉनमी को फाइव ट्रिलियन बनाने का काम जारी है
देश विश्वगुरु बनने की राह पर चल पड़ा है....
और तुम जैसे देशद्रोही लोग इन फालतू मुद्दों पर वक़्त बर्बाद कर रहे हो.....