खेल के मैदान
खेल के मैदान
चलो जाने आज क्यों बच्चे, बूढ़े हो रहे हैं बड़े परेशान,
जहाँ देखो वहाँ हर कोने पर बन गए बड़े- बड़े मकान,
कहाँ लेकर जाऐंगे बैट बल्ला, कहाँ खेले छुपन छुपाई ?
इधर-उधर जहाँ देखो नहीं दिखते खेल-कूद के मैदान,
घर में खेल कर थक गए, दादीजी भी ना जाते टहलने,
घर के बाहर खेलने जाते तो सामने आ जाते हैं वाहन,
भगवान ये तो बड़ी समस्या है ,आज बड़ी विवशता है,
खुली हवा नहीं और ना ही दिखते कहीं खेल के मैदान,
कोई इसका हल बताये ,कोई तो उपाय कहीं से लाये ,
कब से बाहर खेले नहीं सोच- सोच हो रहे हम परेशान,
खेल के मैदान नहीं घर में खेलने पर मम्मी डाट लगाती,
घर में कैद होकर ही हमने खोल ली है खेल की दुकान,
अब तो लगता बचपन में जैसे बचपना खोता जा रहा है,
सुंदर, मंहगे सभी खिलौने ,पर न दिखते खेल के मैदान,
मैं चाहूँ धूल मिट्टी में खेलना जीवन के सब सुख लेना,
घर में खेल-खेलकर थक गये हम नन्हीं-नन्हीं सी जान,
भीड़ वाले शहर से,अच्छा लगता हमको अपना गांव,
नहीं हैं खेल के मैदान दूर-दूर तक दिखते सिर्फ मकान,
घर में धमाचौकड़ी मचाने पर,कहते सब हमको शैतान,
सोचो जरा बिना खेल खेले,हम सब कैसे बनेंगे महान ,
भगवान इस पर करो विचार, ढूंढो इसका कोई उपचार,
इच्छा यही हमारी ला दो कहीं से भी हमें खेल का मैदान I
