कहानी
कहानी
अच्छा है वही सच्चा है जो।
जिंदा है वही बच्चा है जो।
जब सूरत पर सीरत हावी हुई।
अपूर्णता पर संपूर्णता भारी हुई।
आए तो थे माटी में मिलाने ।
खुद माटी बन कर रह गए।
गिराया तो बहुत अपनों ने।
नजरों से लेकिन गिरा न सके।
ठोकरें दी कई लेकिन,
पत्थर को वह हटा न सके।
हम मोम बने वहां,
जज्बातों की कदर हुई जहां।
पत्थर पर भी फूल खिले वहां।
चरण वंदन हुए जहां।
उसकी अदाकारी में जितनी मक्कारी है।
हमारी ईमानदारी में उतनी ही खुद्दारी है।
जहां फिक्र होती है वहां जिक्र नहीं होता।
जहां जिक्र होता है वहां सिर्फ दिखावा होता है ।
कलम चलती है तो स्याही रंग भर देती है।
मोम जलता है तो बाती प्रकाश कर देती है।
इंसान नहीं इंसान का चरित्र बोलता है।
रंग नहीं रंग का असर बोलता है।
लकड़ी की ज़िद थी पेड़ ही रहना।
न टेबल बनना न कुर्सी बनना।
हमारी ख्वाहिश है पेड़ों की छांव में रहना।
न किस्सा बनना न कहानी बनना।