खामोशियां कुछ कहती हैं
खामोशियां कुछ कहती हैं
बहुत क़रीब से पढ़ा है हमने खामोशियों को
खामोश हैं ख़ामोश रहने दो खामोशियों को
बेशुमार दर्द दफन हैं इनके छलनी सीने में
कुछ पल सुकून से रहने दो खामोशियों को
अपने मतलब को जल्दी पहचान लेती है
उसके इरादों में कमी नहीं मान लेती है
जनाब बड़ी शातिर है दुनिया बचकर रहना
यहाँ कौन अपने काम आयेगा जान लेती है
मतलब पड़ा तो मुस्कुराके गले मिलते हैं
उनकी नीयत में कांटों के फूल खिलते हैं
गजब का अंदाज़ है इस शहर के लोगों का
पहले ज़ख़्म देते हैं फिर हंस कर सिलते हैं
चलो दुश्मन के घर रात बसर कर लेते हैं
मौत से पहले अपनी भी ख़बर कर लेते हैं
कौन जाने ऐसा मौका फिर मिले न मिले
अपनी चन्द सासें उसको नज़र कर लेते हैं
मंजिल का तो पता नहीं फिर भी चल रहे हैं
भेड़ों के झुंड में जाने किधर निकल रहे हैं
जवानी गुजार दी है गैरों का दामन थामकर
जिंदगी के हर मोड़ पर अब फिसल रहे हैं।