खामोशी
खामोशी
जब से वह दूर चली गई है मुझसे,
ढूंढता हूं उसे नगर की गलियों में,
मायूस बनकर आंसू बहाता हूं मैं,
खामोशी अब छा गई है जिंदगी मैं।
याद करता हूं उसको दिन रात में,
हंगामा वह करती थी हर बातों में,
सह रहा था उसको मैं खामोशी से,
परेशान हो गया था मैं जिंदगी में।
शंका किया करती थी वो मुझ पे,
मैं समझा रहा था उसको प्यार से,
लेकिन वो नाराज़ हो गई मुझसे,
खामोश हुआ उसकी गैर समझ से।
राई का पर्वत बना दिया एक पल में,
बहुत समझाया था मैंने उसे दिल से,
न समझ पायी मेरे प्यार को "मुरली",
बस खामोश बन गया मैं जिंदगी में।

