खामोशी मचल रही है
खामोशी मचल रही है
शोर की बहती हुई नदी में
बर्फ के टापू सी
चमकती हुयी खामोशी
पिघल रही है,
शोर की तरह बहने को
मचल रही है।
अपने आस पास बहते हुए
अनगिन शब्दों
और उनकी आवाजों में
एक नया शब्द
एक नयी आवाज
प्रवाहित करने की
युगति लगा रही है
डर था और है भी कि
अनसुना रहने का
इसलिए अपने तरह खामोश
शब्द मनुष्य से
परिणय का सफल प्रबंध
करती है
और मुस्कराते हुए उसके
गले लगती है
और उससे गुफ़्तगू कर रही है
हमने भी सुना था
खामोशी को सुनना अद्भुत होता है
और सचमुच कितना अद्भुत है
खामोशी को सुनना
शोर की इस बहती हुई नदी में।
