खामियां...
खामियां...
क्या खामियां सिर्फ एक लफ्ज है,
या सच में होती है
खामियां किसी में ...?
तो फिर क्यों नजर नहीं आती है
मुझे तुझमें कोई खामियां ....
क्यों तू मुझे
हर तरफ से पूरे ही
लगते हो ...
क्यों तेरी हर आदत
मुझे सही लगती है,
क्यों तेरी हर बात मुझे प्यारी लगती है .....
क्या सच में तुझमें
नहीं है
कोई खामियां .....
या फिर मेरी ये
दीवानी आंखें
ढूंढ नहीं पाती है
तुझ में कोई खामियां .....।
क्या प्यार सच में
अंधा होता है ...?
क्या प्यार में सब कुछ सही लगता है ...?
क्या सच में नजर नहीं आती है
कोई खामियां .....?
क्या तुझमें नहीं है
कोई खामियां ...?
या तेरे लिए प्यार
मुझे दिखाता ही नहीं
मुझको तुझमें कोई खामियां .....।

