आंखें
आंखें


उनकी आंखें
मुझे हर वक्त देख रहा था
हर वक़्त
हर लम्हा बस
मुझको ही देख रहा था।
मानो कुछ लिखा हो
मेरे चेहरे पे
और उसे वो
पढ़ रहे थे।
जब भी मिलते थे
बस नजारे टीका कर
बैठ जाते थे।
उनके वो देखना
हर पल मुझे यूं घूरना
मेरे लिए मुश्किल बन गई थी।
ऐसे नज़रे
मिलाते मिलाते
में भी खोने लगी उन आंखों में।
ना जाने कौन सी सुकून
मुझे मिलने लगी
कोई अपना सा
पास लगने लगा।
उनके सामने आने
पर धड़कन तेज होने लगी
पर जवान वैसे ही चुप थी।
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सिर्फ होते रही
नज़रों से नज़रों का टकरार।
आंखे भी
बोलते है
ये मुझे जब समझ में आने लगी
जब में और तेज़ी से उनके
आंखों में डूबने लगी
तभी खबर मिली
की
उनकी नजर में
कोई शक्ति नहीं थी
की वो किसीको देख सके।
और उस लाचारी पन की
आंखे
मुझे ले गया था
किसी और एक दुनिया में
जहां से अब भी
लौट पाना मुमकिन नहीं है
क्यों की मेरी ये आंखे
और समझ ने को
तयार नहीं है
अभी भी ढूंढ रहो रही है
मेरी ये आंखें,
उन मासूम आंखें को।